सांसारिक परिवेश में नित नवीन परिवर्तन सामान्य है। प्रकृति और परिणति एक-दूसरे के पर्याय हैं। शिक्षा का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। शैक्षिक क्षेत्र में वर्तमान शिक्षा प्रणाली सरलता से कठिनता तथा बोध से अबोध की ओर अग्रसर होने के लिए पे्ररित करने वाली सकारात्मक नीति है। इसी नवयुगीन कार्य दिशा का अनुसरण करते हुए ‘सुबोध संस्कृत व्याकरण माला’ चार भागों में विभक्त है। पुस्तकांे की इस शंृखला में कक्षा चार से कक्षा आठ तक की पुस्तकें हैं, जिनमें क्रमशः भाग-एक (कक्षा चार और पाँच के लिए) भाग-दो (कक्षा छह के लिए), भाग-तीन (कक्षा सात के लिए) और भाग-चार (कक्षा आठ के लिए) हैं। छात्रों को श्रवण-वाचन-लेखन आदि भाषा कौशलों, भाषा का शुद्ध संस्कार एवं विकास, संस्कृत-भाषण-शिक्षण का सरलतम परिचय, सृजनात्मक प्रतिभावर्धन, स्वातंत्रय अभिव्यक्ति, समृद्ध शब्दकोश आदि महत्त्वाकांक्षाओं की प्राप्ति करवाना ही इस पुस्तक का परम ध्येय है। सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन की नवीन शिक्षा नीति को बल देने तथा छात्रों को लाभान्वित करने हेतु इस पुस्तक में विषयनिष्ठ, वस्तुनिष्ठ तथा बहुवैकल्पिक प्रश्नों को सम्मिलित किया गया है जिनके उत्तर भी अंत में दिए गए हैं। प्रस्तुत ‘सुबोध संस्कृत व्याकरण माला’ की शंृखला, संस्कृत भाषा-शिक्षण विषयक नवीनतम पद्धतियों और प्रयोगों के साथ-साथ, बच्चों की मानसिक तथा पाठ्यक्रम स्तरीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए रंगीन चित्रों, प्रायोगिक रेखाचित्रों तथा खेल क्रियाकलापों द्वारा विषय को अति रोचक व रोमांचक बनाने वाली सर्वथा अप्रतिम एवं अनुपम कृति है। |
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